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आचार्य श्रीराम शर्मा >> सफलता के सात सूत्र साधन

सफलता के सात सूत्र साधन

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4254
आईएसबीएन :0000

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विद्वानों ने इन सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है, वे हैं- परिश्रम एवं पुरुषार्थ ...

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आध्यात्मिक और अनवरत श्रम जरूरी


एक बार एक बड़े परिश्रम के साथ मनुष्यों ने ऊँचे-ऊँचे शिल्प खड़े किए। उन्हेंकला-कृतियों से सजाया और बहुत समय तक उनकी रक्षा की, किंतु कालांतर में जब उन्होंने उसको आवश्यक परिश्रम एवं अपेक्षता का अंश देना बंद कर दिया, वेमिट्टी मात्र बनकर रह गए।

बड़े-बड़े साम्राज्य, बड़े-बड़े समाज, बड़ी-बड़ी सभ्यताएँ और बड़ी-बड़ी संस्कृतियाँमनुष्य की श्रम साधना से बनीं और फिर उसी की अनाश्रमिक प्रवृत्ति के कारण मिट गईं। श्रम के बल पर बनाई गई कोई भी वस्तु बनी रहने के लिए निरंतर श्रमकी आवश्यकता रखती है। यदि आज यह सोच लिया जाए कि संसार में सुख-सुविधा के प्रचुर साधन इकटठे हो गए हैं, अब आगे उनके लिए श्रम करने की क्या आवश्यकताहै, तो निश्चय ही कल से संसार में दरिद्रता का सूत्रपात हो जाए। श्रम से ही श्रेय प्राप्त होते हैं और श्रम से ही वे सुरक्षित रहते हैं।

बड़े से बड़े परिश्रम के साथ ऊँची से ऊँची शिक्षा एवं योग्यता प्राप्त कर लेनेके बाद वकील, बैरिस्टर, प्रोफेसर और डॉक्टर आदि यह सोच लें कि पच्चीस-तीस साल के कठिन पुरुषार्थ के बाद उन्होंने पर्याप्त योग्यता प्राप्त कर ली हैअब उसके लिए परिश्रम की क्या आवश्यकता है, तो क्या वे एक दिन भी अपनी योग्यता सुरक्षित रख सकते हैं ? इसलिए सारे समझदार वकील, बैरिस्टर,प्रोफेसर आदि अपनी योग्यता को सुरक्षित बनाए रहने के लिए निरंतर श्रम करते रहते हैं और जो ऐसा न करने की भूल किया करते हैं, वे अपने क्षेत्र मेंदूसरों से पिछड़ जाते हैं। जो एक बार उपार्जित योग्यता के बल पर जीवन भर योग्य बने रहने की सोचते हैं, वे भूल करते हैं। परिश्रम, प्रयत्न औरपुनरावृत्ति में स्थान आ जाने से उपार्जित योग्यताएँ भी पास से चली जाती हैं। वे तभी तक किसी के पास बनी रह सकती हैं, जब तक उनके लिए श्रम कियाजाता रहता है।

कला-कौशल की बड़ी-बड़ी सिद्धियाँ श्रम हीनता एवं अभ्यास शून्यता से निकम्मी हो जातीहैं। एक शिल्पकार, चित्रकार अथवा कलाकार अपनी सिद्धि के संतोष में यदि अभ्यास का परित्याग कर दे तो क्या वह दक्ष बना रह सकता है ? जिस श्रम कीबदौलत वह एक से एक ऊँचे और बढ़िया निदर्शन तैयार करता रहता है, उसी के अभाव में आगे प्रगति करना तो दूर पीछे की विशेषताएँ भी खो देगा। यही कारणहै कि संसार में सैकड़ों उदीयमान कलाकार और शिल्पकार ऐसे हुए हैं, जो अपनी ऊँची संभावनाओं की एक झलक दिखाकर बुझ गए और संसार उनकी असफलता पर तरस खातारह गया। उदीयमान प्रतिभाओं के पतन का एक ही कारण होता है-'प्रमाद !' जो प्रारंभिक परिश्रम से लेकर उठता है, उसका त्याग कर दिए जाने से भविष्य कीसंभाव्य प्रगति रुक गई और उदीयमानता अस्तमित होकर अंधकार के परदे में चली गई। इसलिए आवश्यक है कि अपनी योग्यताओं एवं विशेषताओं को तरुण बनाए रखनेके लिए अविराम परिश्रम में संलग्न रहा जाए।

कला-कौशल की भाँति अनवरत श्रमशीलता का नियम धनोपार्जन के क्षेत्रों में भी लागूहोता है। जो व्यापारी, व्यवसाई अथवा उद्योगी अपने कार्य में निरंतर परिश्रम करते रहते हैं, वे न केवल अपने व्यवसाय को सुरक्षित ही बनाए रखतेहैं, बल्कि बढ़ाया भी करते हैं। परिश्रम के बल पर कुछ समय में लाखों-करोड़ों की दौलत कमा लेने के बाद यदि कोई उद्योगी यह सोचकर प्रमादी,बन जाए कि अब तो पर्याप्त धन मिल गया है, अब परिश्रम अथवा उद्योग करने की क्या आवश्यकता है, तो उसकी वह अपमित संपत्ति उससे भी कम समय में समाप्त होजाएगी, जितने समय में उसने उसे कमाया है।

उपार्जन की ओर ध्यान लगा रहने से मनुष्य का मस्तिष्क अपव्यय की ओर से हटा रहता है।जब मन और मस्तिष्क की गति आय की दिशा में लगी हुई है तो उसकी विपरीत दिशा का अपव्यय की ओर न जाना स्वाभाविक ही है किंतु ज्यों ही आय की ओर सेउन्हें छुट्टी मिली नहीं कि वे व्यय की ओर चल पड़े। एकमात्र व्यय की ओर चले हुए मन-मस्तिष्क फिर केवल व्यय तक ही सीमित नहीं रह सकते, अपव्ययता सेहोते हुए अनिवार्य रूप से व्यर्थ-व्ययता और व्यसन-व्ययता तक पहुँच जाएँगे।

व्यक्तिगत जीवन की तरह निरंतर श्रमशीलता का नियम समाजों एवं राष्ट्रों के उत्थान-पतनमें भी लागू होता है। जिस समाज अथवा राष्ट्र के नागरिक जितने अधिक श्रमशील होंगे, वह राष्ट्र व समाज उतनी ही अधिक उन्नति करता जाएगा। अमेरिका अथवारूस यद्यपि संसार के अनेक देशों से छोटे देश हैं, किंतु निरंतर श्रम की बदौलत आज वे संसार के सबसे समृद्ध एवं शक्तिशाली देश बने हुए हैं। यदि वहदोनों देश अपनी वर्तमान समृद्धि से संतुष्ट होकर अविराम श्रमिकता का परित्याग कर दें ? तो क्या कल वे इस स्थिति में रह सकेंगे ? कदापि नहीं औरनिश्चय ही जिस दिन वे श्रम को छोड़कर प्रमाद के वशीभूत हो जाएँगे, उसी दिन से उनका पतन प्रारंभ हो जाएगा।

इसलिए क्या व्यक्ति और क्या राष्ट्र जो भी अपनी उन्नति चाहता है और अपनी दर्तमानउपलब्धियों को भविष्य में सुरक्षित रखना चाहता है, वह अविरत परिश्रम का महामंत्र अपनाकर आलस्य एवं प्रमाद के अभिशाप से सदा दूर रहे।

कहना न होगा कि जिस प्रकार भारतवासियों ने अविरत संघर्ष के बल द्वारा जिसस्वाधीनता को उपलब्ध किया है, उसे सुरक्षित रखने और समृद्धि का रूप देने के लिए उन्हें अखंड पुरुषार्थ करना ही होगा। अन्यथा न तो स्वतंत्रता कीरक्षा कर पाएँगे और न समृद्धि के शुभ दर्शन कर पाएँगे। इसी प्रकार निजी जीवन में हर व्यक्ति को नित नई सफलताएँ पाने और उन्हें सुरक्षित रखने केलिए अनवरत श्रम आवश्यक होता है।

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    अनुक्रम

  1. सफलता के लिए क्या करें? क्या न करें?
  2. सफलता की सही कसौटी
  3. असफलता से निराश न हों
  4. प्रयत्न और परिस्थितियाँ
  5. अहंकार और असावधानी पर नियंत्रण रहे
  6. सफलता के लिए आवश्यक सात साधन
  7. सात साधन
  8. सतत कर्मशील रहें
  9. आध्यात्मिक और अनवरत श्रम जरूरी
  10. पुरुषार्थी बनें और विजयश्री प्राप्त करें
  11. छोटी किंतु महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें
  12. सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है
  13. अपने जन्मसिद्ध अधिकार सफलता का वरण कीजिए

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